सत्ता का दंभ
हरिता. पी.आर 10 ए
नगर है उज्जैन भारत का प्राचीन
राजा भोज साथी माघ बडे महान।
चले भेष बदलकर दोनो एक दिन,
जाने प्रजा का सच्चा हाल ।
भडक गये वे जंगल में कच्चे,
रात बीत गयी आदी से जदा
देखा भृगुतारा सुन आई चहचहाना
आभास होने लगा सूर्योदय का
देख! कोई छाया किसी की,
समझा कोई लकडहारिन
पूछा दोनोँ उससे प्रश्न
मूँह तोड जवाब मिला उनको
विनीत हुए दोनो उसके सामने
झुक गये दोनोँ का सत्ता दँभ।।
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